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________________ प्रस्तावना परिग्रह-ममत्व भाव, इसके २४ मेद हैं। मिथ्यात्वादि १४ प्रकार का अन्तरङ्ग और क्षेत्रादि १० प्रकार का बाह्य। ये सब ममता के कारण है, इससे ये परिग्रह हैं। निर्जरा-कर्मों का एक देश झड़ना, यह दो प्रकार है सविपाक और अविपाक । अहिंसा-प्रमाद से प्राणों का घात न करना । अहिंसा दो प्रकार की है- एक अन्तरङ्ग और दूसरी बहिरङ्ग । क्रोधादि कषाय सहित मन वचन काय होने से ही हिंसा होती है, कषाय रहित भाव रखना अहिंसा है। अपरिग्रह-परिग्रह का न होना, परिग्रह त्याग । पहला सर्ग हिमालय-भारतवर्ष की उत्तरी सीमा पर स्थित एक पर्वतमाला (इसकी चोटियाँ बहुत ऊँची हैं और उन पर बराबर बर्फ जमी रहती है। सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई २६०००२ फीट है और जो संसार की सबसे ऊँची चोटी है)। गङ्गा-भारतवर्ष की एक प्रधान और पवित्रतम नदी । किन्नर-देव योनि की चार श्रेणी हैं, इनमें दूसरी श्रेणी के देव विविध-देश देशान्तरों में रहने के कारण व्यन्तर कहलाते हैं। इन व्यन्तरों के प्रथम भेद का नाम किन्नर है।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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