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________________ ५४६ परम ज्योति महावीर यों प्रभु के इन उपदेशों से परिवर्तित हृदय तुरन्त हुये। केवल न धर्म में पर समाजमें भी सुधार अत्यन्त हुये ॥ उनकी वाणो में शिवद सत्य हो सुन्दर स्वय झलकता था। सब मन्त्र मुग्ध हो सुनते थे उनको कुछ भी न खटकता था । जिनराज 'राजगृह' तजें नहीं, 'श्रेणिक' को ऐसा लगता था। पर समय किसी पर ध्यान न दे निज निश्चित गति से भगता था । यह चतुर्मास हो गया, देख--- 'श्रेणिक' ने मन कुछ म्लान किया। पर वीतराग ने ध्यान न दे निश्चित तिथि में प्रस्थान किया ।। उन 'परम ज्योति' को अभी अन्यनगरों का तिमिर गलाना था । औ' ग्राम ग्राम के मानव को, मानव का धर्म सिखाना था ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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