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________________ raat सर्ग ध्रुव सत्य कथन है यह कोई, उन्मत्त पुरुष की गल्य नहीं । यह सब यथार्थ का चित्रण है, इसमें न कल्पना अल्प कहीं ॥ ज्योतिषी सुरों ने समवशरण, इतना अभिराम लगाया था । जिसको विलोक कर लगता, भूपर स्वर्ग उतर कर आया था || प्रवेश पा सकते थे, सभी । सकते थे, चण्डाल सभी ॥ उसमें भूपाल सभी कङ्गाल उसमें सहर्ष es ब्राह्मण जिस भाँति वहाँ श्रा सकते थे पुण्यात्मा, धनपति, गुणी सभी । उस भाँति वहाँ आ सकते थे, पापी, निर्धन, निर्गुणी सभी ॥ नर के समान श्रा सकते थे, वृष, गज, तुरङ्ग, लंगूर वहाँ । निर्भय प्रवेश कर सकते थे, मैना, मधुघोष, मयूर वहाँ ॥ ૨૩ ૪:૦
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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