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________________ ૪૨ क्यों पता लगाते नहीं ? उन्होंने लिया श्रभिग्रह कैसा है ? क्यों नाथ ! हमारे हो रहा प्राज कल शासन में, ऐसा है ? यदि यहाँ पारणा हुई न तो यह राज्य वृथा यह कोष वृथा । 'श्री' नहीं श्राज भर हमें सदा, जनता देवेगी दोष वृथा ॥ हमको अतएव अभिग्रह का अब सत्वर पता लगाना है । फिर तदनुसार ही शीघ्र हमें, साधन सम्पूर्ण जुटाना है || परम ज्योति महावीर इससे जैसे भी बने आप यह पता तुरन्त लगायें अब । जिससे कि हमारी नगरी से उपवासे सन्त न जायें अब ॥ " -रानी ने राजा को सूचित - यों निज हार्दिक उद्गार किये । सुन जिन्हें भूप ने कहा कि अब होगा अवश्य श्राहार प्रिये ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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