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________________ पन्द्रहवाँ सर्ग ४० फिर 'कूपिय' पहुँचे, तदनन्तर, 'वैशाली' को प्रस्थान किया । कुछ टहर वहाँ ग्रामाक गये, फिर 'शालिशीर्ष जा ध्यान किया ।। चल पुनः 'भद्दिया' में करने - को वर्षावास पधारे थे । यह छठवाँ चातुर्मास यहाँ, करते सिद्धार्थ-दुलारे थे । चातुर्मासिक तप किया, यहाँभी ग्रहण कि या अाहार नहीं । रह निराहार ही बिता दिये, वर्षा के महिने चार वहीं ।। कर चातुर्मास समाप्त पुनः, चल 'मगध' ओर वे नाथ गये। 'गोशालक' भी अनुगामी से, उन स्वामी प्रभु के साथ गये । औ' वहीं शीत ऋतु प्रातप ऋतुका समय बिता इस बार दिया। फिर 'श्रालंभिया' पहुँचने को, उनने अविलम्ब बिहार किया ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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