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________________ ३६६ अतएव कहीं रुकते न अधिक, हर ग्राम शीघ्र ही तजते थे । प्रायः जा विजन तपोवन में, वे 'सोऽहं ' 'सोऽहं' भजते थे ॥ यदि विघ्न्न पारणा में श्राता, सन्ताप न थे ! करे, तो भी करते कोई कितना उपसर्ग पर देते वे अभिशाप न थे ।। इससे कुछ दुष्ट अकारण ही, उनको दिन रात सताते थे । कुछ तप से उन्हें डिगाने को सम्मुख उत्पात मचाते थे !! परम ज्योति महावीर पर किंचित् कुपित न होते थे, वे करुणा के अवतार कभी श्रौ' पास न आने देते थे, वे कोई शिथिलाचार कभी ॥. तो प्रमाद उनमें कोई भी होता था कभी प्रतीत नहीं । उनका क्षण मात्र असंयम में होता था नहीं व्यतीत कभी ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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