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________________ ३२८ परम ज्योति महावीर अतएव शीघ्र हो अब तो मैं, आध्यात्म ज्ञान का लाभ करूँ। इस परम ज्योति की आभा से, अब अपने को अमिताभ करूँ ॥ १२ इस युग में 'ऋषम' जिनेश्वर ने, जो मुनि का धर्म चलाया है । जो परम्परा से तब से ही, अब तक भी चलता आया है ।। है आज वही अपनाने में, भेरी वास्तविक भलाई अब । इस धम-कवच को बाँध अतः, कर्मों पर करूँ चढ़ाई अब ।। उत्तम क्षमादि दश योद्धा ले, कर्मों पर जय सोल्लास करूं। कैवल्य प्राप्ति के लिये सतत, तप-संयम का अभ्यास करूँ।। द्वादश-अनुप्रेक्षा-चिन्तन से, अवशिष्ट ममत्व विलीन हुवा । तत्क्षण वैराग्य वहाँ उसकेसिंहासन पर आसीन हुवा ॥ १२. धर्मानुप्रेक्षा
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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