SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१६ बारहवाँ सर्ग हो सिंह जीव-हत्याएं की, मैंने गंगा के घाटों पर हो चको भी साम्राज्य किया, बत्तिस सहस्र सम्राटों पर । चरणों से कुचला गया कभी मैं होकर पथ की घास अहो । श्रौ' कभी बैठ इन्द्रासन पर सुख भोगे हैं सोल्लास अहो । सुर, नर, पशु, नर्क चतुर्गति में, अब तक अनादि से घूम चुका । सह चुका यातना नरकों की औ' मचा स्वर्ग में धूम चुका । हो हिंसक निर्मम जीव कभी, मैंने की हिंसा घोर अहो । औ' कभी अहिंसक मुनि होकर मैं बढ़ा दया की ओर अहो ।। क्रमशः ये दृश्य सभी उनके, शुचि अवधि ज्ञान में चमक गये । गत सभी भवों के दृश्य उन्हें, चल चित्र सदृश ही झलक गये ।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy