SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवाँ स जिन-मुनि-मुद्रा अपनाने में- दिखा | ही उन्हें स्वपर का त्राण श्र' पञ्च महाव्रत पालन मेंही उन्हें स्वपर कल्याण दिखा ॥ वे क्यों कि परिग्रह द्वारा हरसकते थे जग का त्रास नहीं । जलनिधि निज जल से हर सकताहै किसी पुरुष की प्यास नहीं ॥ सब भूषण दूषण से भासे, भूषा भूसा सी ज्ञात हुई। निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनि बननाअत्र उन्हें सरलतम बात हुई || २० ―――――― अपने पावन कर्त्तव्यों था किया । आज उन्होंने ज्ञान अपने अभीष्ट को पाने सम्यक् पथ था पहिचान लिया || किया । करुणा की उनके मानस से ऐसी निर्झरिणी जिसकी गति कुण्ठित कर सकते -- श्राज बही । थे विघ्नों के गिरिराज नहीं !! का V ३१३
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy