SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परम ज्योति महावीर मुझको है शात, इसी भव में - पाना है निश्चित मोक्ष तुम्हें । हो तीन ज्ञान के धारक तुम, इससे कुछ भी न परोक्ष तुम्हें । बस, यही विचार दबाये थी, मन में ही स्वीय उमङ्ग अभी । औ' अब तक नहीं उठाया था, मैने यह दिव्य प्रसङ्ग कभी ।। इसको कहने का लोभ किन्तु, मन आज सका है त्याग नहीं । अतएव मौन रह पाता है, मेरे मन का अनुराग नहीं ।। श्री' तोड़ श्राज अब बन्धन सब, मुखरित मेरा यह प्यार हुवा । जो नहीं चाहिये कहना, वहकहने को व्यग्र दुलार हुवा ॥ विश्वास मुझे है तुमको भी यह अपनी माता प्यारी है। हो भले ज्ञान में हीन किन्तु जननी तो यही तुम्हारी है।
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy