SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परम ज्योति महावीर पर राज दम्पती को सब से, बढ़ हर्ष हुवा अनुभूत अहो । कारण, इस सभी महोत्सव का, कारण था उनका पूत अहो ॥ 'सिद्धार्थ'-मोद का आज नहीं, कोई भी तो परिमाण रहा । अवलोक जन्म कल्याणक को, माना उनने कल्याण महा ॥ अपना मातृत्व विशेष सफल, माना था 'त्रिशला' माता ने । निज माता उन्हें बनाया था, नव युग के नव निर्माता ने ॥ इससे सुख से उन दोनों का, मन फूला नहीं समाता था । सुर पूज्य नरोत्तम से उनका, अत्यन्त निकट का नाता था । नाती स्वरूप पा तीर्थकर, 'चेटक' को हुवा प्रमोद स्वयं । सोचा, 'त्रिशला' का पूत खिला, मैं पूत करूँगा गोद स्वयं ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy