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________________ श्री विदुषीरल प० परिडता चन्दाबाई जैन (संचालिका जैन बाला विश्राम भारा) “परम ज्योति महावीर" नामक महाकाव्य की रचना का आयोजन जानकर प्रसन्नता हुई श्री अन्तिम तीर्थकर महावीर प्रभु की दिव्य ज्योति ही आज इस पंचम काल में जैन धर्म को प्रकाश प्रदान कर रही है एवं उनकी दिव्य वाणी ही जैनों के जैनत्व को कायम रख रही है। इन महाप्रभु के चरित्र को पद्यमय रचकर अलंकृत करने का प्रयास श्री 'सुधेश' जी का सफल हो और यह रचना स्वाध्याय प्रेमियों के लिये व्यवहार तथा निश्चय दोनों दृष्टिकोणों से मोक्ष मार्ग दर्शाने में समर्थ हो। धर्मकुञ्ज, बारा चन्दाबाई श्री पं० जगमोहन लाल जी शास्त्री (प्रधान मंत्री भा० दि. जैन संघ) ___ हमें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपने इस युग के महान ऐतिहासिक और धर्मतीर्थ प्रवृत्ति के संचालन करनेवाले भगवान महावीर स्वामी के सम्बन्ध में एक महाकाव्य का निर्माण किया है जो कि महाकाव्य के समस्त लक्षणों और अंगों से परिपूर्ण तथा सर्वाङ्ग उपयोगी है। इस काव्य का निर्माण कर आपने एक बहुत बड़ी कमी की पूर्ति की है। श्रापका प्रयास अापके कवि जीवन को सफल बनाने का महान् प्रयास है हमें विश्वास है आपकी सरल-सरस और सुन्दर काव्य रचना भगवान महावीर के पवित्र जीवन चरित्र के आश्रय को पाकर जनता के हृदय में धर्म सुधा का सिंचन करेगी। भावी युग में धार्मिक एवं नैतिक चरित्र को आगे बढ़ाने में यह एक बहुत बड़ा प्रयास सिद्ध होगा। कटनी ___ जगमोहनलाल शास्त्री
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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