SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवाँ सर्ग हो चित्र लिखित से देख रहे - थे सारे दर्शक मौन वहाँ । यह नहीं किसी को चिन्ता थी, हैं मेरे परिजन कौन कहाँ ? प्यारी प्यारे प्यारे को भूली का भूली प्यारी बेटा बेटा भूली भूला महतारी पलकें न एक भी बार गिरें, सब का था मात्र प्रयास यही । कारण ऐसा सौभाग्य पुनः मिलने का था विश्वास नहीं || थी, थी । को, महतारी थी ॥ सब सुरपति कृत अभिषेकोत्सव -- के दृश्य समक्ष निरखते थे । अवलोक जिन्हें यों लगता था, मानों प्रत्यक्ष निरखते थे | बस, यही सोचकर सब ही ने, सुस्थिर अपना हर योग किया । मन वचन काय में से न किसी-का भी अन्यत्र प्रयोग किया || २२३
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy