SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आठवाँ सर्ग होगा सुरपति का नाटक यहचर्चा बिजली सी फैल गयी । क्षण भर में राजभवन से यह, हर मार्ग गयी हर गैल गयी ॥ जहाँ पर जैसे थे जो व्यक्ति वे शीघ्र वहाँ से भाग चले । द्विज पोथी पत्रा छोड़ चले, क्षत्रिय सि, चरछी त्याग चले ॥ निज ग्राहक तज कर वैश्य भगे, श्रौ' शुद्ध चाकरी तज भागे । सब यही सोचते थे कैसेमैं पहुँचूँ सबसे ही आगे || वधुएँ उतावली में अपने, शिशु तक तो लेना भूल गयीं । कुछ भूषण उलटे पहिन गयीं, कुछ उलटे पहिन दुकूल गयीं ॥ कटिसूत्र मेखला का भी तो, कुछ समझ सकीं थीं भेद नहीं । काजल का तिलक लगा कर भी, कुछ को न हुवा था वेद कहीं || २२१
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy