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________________ १६८ परम ज्योति महावीर रच गये अनेक विचित्र चित्र, भीतों पर चतुर चितेरे थे। आँगन में चौक बना वधुत्रोंने विविध प्रसून बिग्वेरे थे । धूपायन में दी गयी जला, थी दिव्य दशांगी धूप अहो । रख दिये गये थे ठौर ठौर, नव मंगल कलश अनूप अहो । पथ दिये गये थे भींच, अतः उड़ती दिखती थी धूल नहीं । एवं न मलिन हो पाते थे, दर्शक के दिव्य दुक्ल कहीं । शुभ अगरबत्तियाँ जलने से, था हुवा समीर पुनीत वहाँ । पाँचों अङ्गलियों के थापोंसे युक्त हुई हर भीत वहाँ ।। सुन्दरतम सदनों के शिखरोंपर ध्वजा गयीं फहरायीं थीं। जो शीतल मन्द सुगन्ध पवन, के झोंकों से लहरायीं थीं ॥
SR No.010136
Book TitleParam Jyoti Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanyakumar Jain
PublisherFulchand Zaverchand Godha Jain Granthmala Indore
Publication Year1961
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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