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________________ आचार्य श्री अजितसागरजी महाराज । • आप प्रतिष्ठाचार्य संहिता सूरि ब्र. पं. सूरजमल जी निवाई (राज.) के गृहस्थावस्था के बड़े भाई हैं। आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की परम्परा में प्रकाण्ड विद्वान ऋषिराज हैं। अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी हैं और अनेक साधुओं एवं त्यागियों को ज्ञानदान देने का श्रेय आपको प्राप्त है। परम विदुषी आर्यिका रत्न सुपार्श्वमती माताजी आपको गुरु रूप में स्मरण करती हुई भक्ति से गद्गद् हो जाती हैं। प्राचीन ग्रन्थ भण्डारों से खोजकर जिनशासन की अनेक विलुप्त विधियों को आप प्रकाश में लाये हैं। विभिन्न प्राचीन गुटकों से एवं ग्रन्थों से पृथक-पृथक विषयों पर आपने हजारों श्लोकों का संग्रह किया है। इसके पहले भी आपकी अनेक रचनाए प्रकाश में आ चुकी हैं। विद्वानों के साथ तत्व चर्चा में आप रुचिपूर्वक रस लेते हैं एवं ग्रन्थों के सतत् अवलोकन से प्रदीप्त प्रतिभा का पूर्ण परिचय देते हैं। विक्रम संवत् 1982 में भोपाल के पास आष्टा नामक कस्बे के समीप प्राकृतिक सुरम्यता से परिपूर्ण भौंरा ग्राम में पद्मावती परवाल जाति में उत्पन्न परम पुण्यशाली श्री जवरचन्द्र जी के घर माता श्री रूपाबाई की कुक्षि से आपका जन्म हुआ था। जन्म के बाद माता-पिता ने आपका नाम राजमल रखा। शल रूपा मां रूपाबाई सुग्रहणी, कार्यकुशल एवं धर्मपरायण महिला हैं। फलतः उनके आदर्शों का असर होनहार संतान पर पड़ा। आपके पिताश्री स्वभाव से सरल, धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति थे। वे वजनकसी का कार्य करते थे। जन्म के समय आपकी स्थिति साधारण थी। आपसे बड़े तीन भाई-1. श्री केशरीमल, 2. श्री मिश्रीलाल और 3. श्री सरदारमल जी हैं। घर पर ही अपने उद्योग के साथ परिवार सहित जीवन यापन कर रहे हैं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 62
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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