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________________ करते हुए आप कुण्डलपुर आये। वहां पर आपसे ब्र. निजात्माराम जी ने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। वन्दना एवं विहार-कुण्डलपुर से विहार करते हुए आप श्री सम्मेदशिखरजी पधारे। वहां पर आपकी वन्दना सकुशल हुई। बाद में आपका चातुर्मास हजारीबाग में हुआ। उसके बाद आप मधुबन में आये। वहां पर क्षुल्लक जी ने आपसे महाव्रत ग्रहण किये। बाद में आप ईसरी पंचकल्याणक में पधारे तथा वहां पर 8-10 दीक्षायें आपके द्वारा हुईं। वहां से विहार करते हुए बाराबंकी पधारे। जहां आपका चातुर्मास हुआ। आचार्य पद - बाराबंकी में चातुर्मास के पश्चात् आपकी जयंती के शुभ अवसर पर समाज ने प्रभावित होकर आपको आचार्य पद से विभूषित किया। वहां वे विहार करते मेरठ आए । मेरठ से आप संघ सहित पांडव नगरी भगवान शांतिनाथ, कुन्थनाथ, अरहनाथ की जन्म भूमि हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र पर अक्षय तृतीया के दिन जिस दिन भगवान आदिनाथ ने श्रेयांस राजा से प्रथम आदिकाल का आहार गन्ने के रस के रूप में लिया था - पधारे। संघ सहित विराजकर आपने सम्पूर्ण संघ ने आहार में गन्ने का रस लेकर उस दिन की याद ताजी की मानो वह दृश्य ही सामने हो । वहां आचार्यश्री संघ सहित एक माह रहकर मीरापुर, जगनमठ, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना, बरनाला, बिनौली, बड़ागांव, बड़ौत आदि नगरों में होते हुए चातुर्मास के लिए दिल्ली कैलाशनगर में विराजे। यहां पर गुरु आज्ञा से महाराज श्री को समाज द्वारा आचार्य पद से सुशोभित किया गया । गिरनार सत्व संकट निवारक - परम पावन गिरनार तीर्थक्षेत्र में विगत बीस वर्ष से जैन धर्मावलम्बियों को क्षेत्र की पूजा-अर्चना से वंचित रखा जाता था। भगवान नेमिनाथ की निर्वाण स्थली पंचम टोंक पर चरण चिन्हों को फूलों से ढककर उन पर रुपये पैसे चढ़ाने को साधु-संतों द्वारा बाध्य किया जाता था। इतना ही नहीं पूज्य आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 60
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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