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________________ दौलतराम जी ने लिखा है 'अरि मित्र महल मसान कंचन कांच निदन प्रति वरन । अर्घावतारन असि प्रहारन में सदा समता धरन ॥ ' इसी भावना को जिन्होंने चरितार्थ किया है उनका नाम है- परम तपस्वी, सन्मार्ग दिवाकर, स्वपरोपकारी 108 आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज । भारतवर्ष की पुण्यधरा पर अवतरण के लिए व्याकुल भारत के उत्तर प्रदेश एटा जनपद के अंतर्गत जलेसर कस्बे का कोसमा ग्राम में जनमे श्री चन्द के पिता श्री बिहारीलाल और माता कटोरीबाई ने कब सोचा था कि उनका पुत्र एक दिन भारत का संत शिरोमणि बनकर जन्म स्थान कोसमा, कुल, जाति पद्मावती पुरवाल और वंश की कीर्ति को उज्ज्वलता से निमज्जित करेगा। सं. 1973 के आश्विन कृष्णा सप्तमी का वह शुभ दिन था, बालक नेमीचन्द ने जन्म लिया । मां की ममता बालक को छह माह से अधिक अपना वात्सल्य न दे सकी और वैराग्य के अंकुरण में नेमीचन्द को मिला वियोग, एक कारण बना। इसके बाद भी नारीत्व के कमनीय स्वप्निल बंधन उन्हें बांध न सके। मां के वियोग के बाद पिता एवं बूआ दुर्गादेवी ने पालन पोषण किया । शिक्षा के क्षेत्र में- बालक नेमीचन्द ने प्रारम्भिक शिक्षा गांव की पाठशाला में पूर्ण की। तत्पश्चात् गोपालदास वरैया दि. जैन सिद्धान्त विद्यालय, मोरैना से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी इस सफलता का श्रेय था उस भक्ति को जो उनकी णमोकार मंत्र के प्रति थी । उत्तर लिखने से पूर्व कापी के शीर्ष पर णमोकार मंत्र लिखा जाता। शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रधानाध्यापक के रूप में पं. नेमीचन्द विद्यादान करने लगे । निरन्तर विकास के पथ पर अग्रसर पं. नेमीचन्द जी सत्संगति में पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 50
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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