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________________ थे। इससे यह समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय के ज्ञाता जान पड़ते हैं। क्योंकि अभयचन्द्र सैद्धांतिक के शिष्य बालचन्द्र मुनि ने जो श्रुतमुनि के अणुव्रत गुरु होने से उनके प्रायः समकालीन थे। इन्होंने शक सं. 1195 (वि.सं.1330) में द्रव्य संग्रह पर टीका लिखी है। दिगम्बर जैन ग्रन्थ कर्ता और उनके ग्रन्थ, नाम की सूची में उनका समय वि.सं. 1316 का उल्लेख है, जो प्रायः ठीक जान पड़ता है। आपने 98 वर्ष 11 महीना 15 दिन की पूर्ण आयु पायी थी। 5. आचार्य श्री पद्मनन्दी जी महाराज आपका जन्म पौष सुदी 7 वि.सं. 1385 को हुआ। 10 वर्ष 7 माह गृहस्थावस्था में व्यतीत किए। 23 वर्ष 5 माह दीक्षित अवस्था में गुजारे और 65 वर्ष 8 दिन आचार्य पद सुशोभित करते हुए 99 वर्ष 8 दिन की पूर्णावस्था में समाधिग्रहण कर मुक्त हुए। घोर संयम का पालन करते हुए आप संघपति बने। आपकी विद्वता अत्यन्त प्रखर थी। मुनि श्री ब्रह्मगुलाल चन्द्रवाड़ के निकटस्थ टापू या टप्पल ग्राम के निवासी श्री ब्रह्मगुलाल पद्मावतीपुरवाल थे। वे चन्द्रवाड़ के जैन धर्म पोषक चौहान राजा कीर्तिसिंह के दरबारी, कुशल लोक कवि और सिद्धहस्त अभिनेता थे। उस समय भारत पर मुगल सम्राट जहांगीर का शासन था। इसी के अधीन इन नगरों और आसपास के क्षेत्र पर महाराज कीर्तिसिंह राज्य करते थे। टापू ग्राम तीन ओर से यमुना नदी से घिरा हुआ है। इसी ग्राम में पद्मावती पुरवाल जाति के गौरव स्वरूप हल्ल श्रेष्ठी निवास करते थे। एक बार जब ये कार्यवश घर से बाहर खेत पर गये हुए थे, उनके घर में भयानक आग लग गई। इसमें न केवल सारा घर ही जल गया, इनका परिवार भी भस्म हो गया। हल्ल राजसभा के मान्य सभासद थे। हल्ल के ऊपर आई इस विपत्ति के कारण राजा-प्रजा सभी को बड़ा दुःख हुआ। कुछ समय पश्चात् पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास .34
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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