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________________ किया। आज भी बरेली के निकटस्थ इस क्षेत्र की पद्मावती पुरवालों में बड़ी महत्ता है। उस उपसर्ग के स्थान पर एक पद्यावती नामक नगर बसाया गया तथा एक विशाल किला, जिसका क्षेत्रफल लगभग 12 मील' का होगा निर्माण किया। समय के झंझावत ने इस गौरवशाली नगरी का आज हर प्रकार से चिन्ह मिटा दिया, किन्तु पद्मावती पुरवाल समाज में आज भी इसका पूज्य स्थान बना हुआ है। इस पद्मावती नगरी के भक्तों ने स्वयं को पद्मावती पुरवाल घोषित किया। 5. पद्मावती पुरवाल बाहुबली के शासन क्षेत्र पोदनपुर के निवासी थे। कालान्तर में पोदनपुर ‘पद्मावती' हो गया। और वहां के निवासी चन्द्रवंशीय क्षत्रिय पद्मावती पुग्वाल कहलाये। पोदनपुर का प्रथम अक्षर ‘पों' तथा अंतिम अक्षर 'र' से मिलकर पोर शब्द का बनना माना गया है। नोट : उपरोक्त किंवदन्तियां 'सुनहरीलाल अभिनन्दन ग्रन्थ' से ली गई हैं। काफी विरोधाभास है। किंवदन्ती किसी घटना का प्रतीतात्मक रूप होती हैं। उनका वास्तविक रूप समझने के लिए विशेष अध्ययन की आवश्यकता है। परन्तु एक बात स्पष्ट है कि पद्मावती पुरवाल जाति का निकास पद्मावती नगरी से हुआ है। इन किंवदन्तियों से प्रकट है। एक बात यहां किंवदन्ती क्रमांक 4 से स्पष्ट है जिसका उल्लेख भी हम पूर्व में कर चुके हैं कि 'पद्मावती' धरणेन्द्र की इन्द्राणी का पार्श्वनाथ के उपसर्ग दूर करने में कोई भूमिका नहीं है। पद्मावती पुरवाल जाति की उत्पति विषयक एक अन्य गाथा सबसे प्राचीन जनश्रुति पद्मावती की प्राप्त होती है। ईस्वी प्रथम शताब्दी के आसपास मथुरा, कान्तिपुरी, पद्मावती और विदिशा में नाग राजाओं का राज्य था। इनमें से कुछ को निर्विवाद रूप से सम्राट कहा जा सकता है। इन चारों नगरों में कान्तिपुरी और पद्मावती ग्वालियर क्षेत्र में हैं। पद्मावती वर्तमान में पवाया नाम के छोटे से ग्राम के रूप में विद्यमान पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 98
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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