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________________ कालान्तर में इस पंदमनगर का नाम बिगड़कर पद्मावती हो गया और यहां के रहने वालों को बाहर 'पद्मावती पुर वाले' के नाम से जाना जाने लगा। यही पद्मावती पुर वाले बिगड़कर 'पद्मावती पुरवाल' शब्द रह गया और क्षत्रियों की एक शाखा एक पृथक जाति 'पद्मावती पुरवाल' के रूप में पहचानी जाने लगी। 2. पद्मावती नगरी जो अपने ऐश्वर्य और धनधान्य के कारण बहुत प्रशंसित थी, एक तपस्वी के कोप का शिकार बनी। तपस्वी ने अपनी विद्या तथा प्रभाव से नगरवासियों को नाना प्रकार से सताना प्रारम्भ किया। अंत मं तंग होकर उस नगर के 1400 परिवार निकलकर अन्यत्र चले गये। वे तीन शाखाओं में बंटे-एक शाखा दक्षिण को, दूसरी मध्यभारत को और तीसरी उत्तर भारत में बस गई। ये लोग चूंकि पदमनगरी के थे, इस कारण पद्मावती पुरवाल कहाये।। 3. पद्मावती नगरी के राज्य मंत्री के एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। वह कन्या इतनी सुन्दर थी कि राजा उस पर मोहित हो गया। उसने उस कन्या से विवाह करना चाहा। किन्तु आयु, जाति एवं धार्मिक अन्तर के कारण मंत्री कन्या को नहीं देना चाहता था। मध्ययुगीन शासक की कन्या पर आसक्ति दिनोंदिन बढ़ती गई। अंत में मंत्री के समक्ष राजा का प्रस्ताव आया। उन दिनों पद्मावती पुरवाल समाज में जातीय पंचायत का प्रचलन था। मंत्री ने यह प्रस्ताव पंचायत के समक्ष रखा। पंचायत ने प्रस्ताव का विरोध किया। फलतः शासक से मंत्री ने कन्या न देने के निर्णय की बात कही। राजा यह सुनकर बल प्रयोग पर उतारू हो गया। उसने युद्ध या विवाह या राज्य से चले जाने की घोषणा की। जातीय पंचायत ने राज्य त्यागकर चला जाना ही उचित समझा। किन्तु उन्मादी शासक ने सेना भेजकर कन्या छीननी चाही। इस पर सभी निष्कासित बन्धुओं ने सेना का मुकाबला किया और विजय हासिल की। ‘पद्मावती' जो कन्या का नाम पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 26
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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