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________________ धर्मपरायण महिला थीं। पिताश्री द्वारिकादास जैन प्रसिद्ध वैध थे। उनके धर्मार्थ-औषधालय से सैकड़ों रोगी निःशुल्क-चिकित्सा प्राप्त करते थे। पीड़ित मानवता की निःस्वार्थ सेवा का यह संस्कार पुत्र श्री पारसदास जैन को पिता से मिला। इसमें सहयोग दिया उनकी विदुषीं पत्नी श्रीमती उर्मिला देवी जैन ने, जो इंदौर के प्रमुख समाजसेवी, शिक्षाविद् मास्टर रामस्वरूप जी की पुत्री थीं। चाचाजी पं. मथुरादास जैन स्वयं वाराणसी से उच्च शिक्षा प्राप्त जैन-दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान थे, जिन्होंने शांति-निकेतन (बंगाल) तक में अध्यापन कार्य किया था। सारे वातावरण ने इनके जीवन में धार्मिक व समाज सेवा के संस्कार भर दिए थे। हिन्दी में एम.ए., संस्कृत में बी.ए. आनर्स तथा बंगाल संस्कृत एसोसिएशन व जैन गुरुकुल से जैन दर्शन की शिक्षा प्राप्त श्री पारस दास जैन 1949 में राष्ट्रीय दैनिक 'नवभारत टाइम्स' से जुड़े और अप्रैल, 2001 तक सक्रिय रूप से उसमें कार्यरत रहे। पत्रकारिता की इस दीर्घ अवधि में समाचार-संपादक, सहायक संपादक एवं स्तंभ-लेखक के रूप में पत्र को गरिमा प्रदान की। उनके कार्यकाल में यह राष्ट्रीय पत्र अनेक बार पुरस्कृत हुआ। वे स्वयं भी अनेक संस्थाओं द्वारा पत्रकारिता के लिए पुरस्कृत हुए। इससे पूर्व 1948 में उन्होंने अपने भाई श्री महावीरदास जैन के साथ हिन्दी का पहला रीडर्स डाइजेस्ट 'सौरभ' निकाला तथा 'सूरदास' पर एक समीक्षात्मक पुस्तक भी लिखी। नवभारत टाइम्स के माध्यम से उन्होंने सारे समाज को जोड़ा और यह जैन-समाज का अपना पत्र बन गया क्योंकि उसमें जैन समाज की धड़कन अभिव्यक्त होती थी। साहू अशोक जी ने इसे बखूबी समझा और श्री पारसदास जैन ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। श्री पारसदास जैन में धर्म और समाज सेवा के संस्कार वंशानुगत थे। उन्हें प्रोत्साहन मिला साहू शांतिप्रसाद जैन, लाल राजेन्द्रकुमार जैन, 369 पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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