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________________ पं. लालबहादुर जी शास्त्री ये रेलवे के एक स्टेशन मास्टर के सुपुत्र थे। इनका जन्म लालरु ( कालका, पंजाब) नामक स्टेशन वाले ग्राम में हुआ था, अतः उस ग्राम की स्मृति में उनके माता-पिता ने इनका नाम भी लालबहादुर रख दिया था। वैसे उनके माता-पिता का मूल निवास स्थल पमारी (आगरा ) था । पण्डित लालबहादुर शास्त्रीजी अक्खड़ एवं निर्भीक वक्ता के रूप में प्रसिद्ध थे । वे जन्मजात कवि थे तथा कविताबद्ध समस्या-पूर्ति बहुत ही सुन्दर ढंग से किया करते थे । सन् 1949 में वे सर सेठ हुकुमचन्द्र के संस्कृत महाविद्यालय में प्राध्यापक हुए । यह वह समय था, जब वहां व्याख्यान - वाचस्पति पं. देवकीनन्दन जी सिद्धान्त-शास्त्री, पं. जीवन्धर जी शास्त्री तथा पं. वंशीधर जी न्यायलंकार अध्यापन का कार्य कर रहे थे। बाद में वे दिल्ली के समन्तभद्र - विद्यालय के प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत रहे । इसी बीच में वे आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार पर शोधकार्य कर पी. एच. डी. हो गये । इस प्रकार वे पण्डित से साहित्य-दर्शन के डॉक्टर हो गये। उसी समय साहू शान्तिप्रसादजी जैन तथा डॉ. मण्डन मिश्र के अनुरोध पर सद्यः संस्थापित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ सन् 1966 से जैन दर्शन, विभाग के संस्थापक-अध्यक्ष हो गये । पं. लालबहादुर जी संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी भाषाओं के धुरन्धर विद्वान थे । के वे सम्पादन-कला के भी मर्मज्ञ थे। उनके द्वारा सम्पादित एवं अनुदित ग्रन्थों में से निम्न प्रकार हैंकुछ - 1. मोक्षमार्ग-प्रकाशक (पं. टोडरमल जी) का ढूंढरी भाषा से हिन्दी अनुवाद तथा उस पर णण्डित्यपूर्ण विस्तृत भूमिका का लेखन, 2. रामचरित (संस्कृत) का प्रथम बार हिन्दी अनुवाद, पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 355
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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