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________________ में आनरेरी मैजिस्ट्रेट का सम्मानित पद प्रदान किया था, जिसका निर्वाह उन्होंने निष्पक्ष रहकर 16 वर्षों तक किया था। राजाखेड़ा में जब आचार्य शान्तिसागर जी के संघ पर कुछ विरोधी ईर्ष्यालुओं ने उपसर्ग किया, तब आपने निर्भीकता पूर्वक उसका निवारण कर विरोधियों को अच्छी सीख प्रदान की थी। पण्डित जी एक निर्भीक पत्रकार भी रहे। उनके द्वारा संस्थापित जैनदर्शन पत्र में प्रकाशित मत-सम्मत एवं सम्पादकीय टिप्पणियां आज भी प्रेरणा प्रदान करने वाली हैं। भी . पं. लालाराम जी शास्त्री विद्वच्छिरोमणि, धर्मरल, सरस्वती-दिवाकर जैसी सम्मानित उपाधियों से विभूषित पं. लालाराम जी शास्त्री का जन्म वि.सं. 1919 के आसपास चावली (आगरा) में हुआ। मुरैना के सुप्रतिष्ठित विद्वान पं. मक्खनलाल जी (जिनका परिचय अन्यत्र दिया जा चुका है) एवं पण्डित श्रीनन्दनलालजी (जो कि दीक्षित होकर मुनि सुधर्मसागर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए और इनका परिचय भी प्रारम्भ में दिया जा चुका है।) के ये सगे भाई थे। पण्डित लालाराम जी ने अनेक विद्यालयों में अध्ययन कर संस्कृत, एवं प्राकृतभाषा तथा जैन दर्शन एवं सिद्धान्त का गम्भीर अध्ययन किया। यही कारण है कि उन्होंने अनेक दुर्लभ एवं दुरूह ग्रन्थों का सम्पादन, अनुवाद कर उन पर सहज-गम्य टीकाएं लिखी। उनके कुछ विशेष रूप से सम्पादित ग्रन्थ निम्न प्रकार हैं 1. आदिपुराण (जिनसेन), उत्तरपुराण (गुणभद्र), 3. शान्तिपुराण (सकलकीति), 4. चारित्रसार, 5. आचारसार, 6. ज्ञानामृतसार, 7. प्रश्नोत्तर-श्रावकाचार, 8. जिनशतक, 9. सुभौमचरित्र, 10. सूक्ति-मुक्तावली, 11. तत्त्वानुशासन, 12. बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र, पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 353
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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