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________________ (2) पं. लक्ष्मणः (वि.सं. 1295) कृत जिणदत्तचरिउ (अप 18 सन्धिया) के आश्रयदाता थे बिलराम निवासी- पद्मावती-पुरवाल वंशी विल्म-पुत्र श्रीधर सेठ 1. (3) महाकवि धनपाल (वि.सं. 1454) कृत बाहुबलिचरिउ - अपभ्रंश (18 संधिया) के प्रेरक एवं आश्रयदाता चन्द्रवाड (चन्दुवार) निवासी पद्मावती-पुरवाल- कुलोत्पन्न वासाहर सेठ प्रस्तुत ग्रंथ में पद्मावती-पुरवाल समाज का गढ़ माने जाने वाले चंदुवार (चन्द्रवाडपट्टन) का सुन्दर वर्णन उपलब्ध है। 1 (4) कवि श्रुतकीर्ति (16 वीं सदी) कृत- अपभ्रंश - अरिवंसपुराणु के आश्रयदाता थे पद्मावती - पुरवाल - कुलोत्पन्न चंदुवार दुर्ग-निवासी रामपुत्र - पंगाराव । उत्तर मध्यकालीन कुछ प्रमुख कवि 1. महाकवि रइधू पद्मावती-पुरवाल समाज के ऐसे उज्ज्वल नक्षत्र हैं, जिन्होंने अपनी दैवी - प्रतिभा से न केवल जैन-विद्या को, अपितु, प्राच्य भारतीय-विद्या के भण्डार को भी समृद्ध किया है। उनकी समकालीन अपभ्रंश, प्राकृत एवं हिन्दी की विपुल साहित्यिक रचनाओं की दृष्टि से उनकी तुलना में ठहरने वाले अन्य प्रतिस्पर्धी कवि या साहित्यकार के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। विविध रसों की अमृत- स्रोतस्विनी प्रवाहित करने के साथ-साथ श्रमण-संस्कृति के चिरन्तन आदर्शों की प्रतिष्ठा करने वाला यह महाकवि न केवल पद्मावती-पुरवाल समाज या समग्र जैन समाज का, अपितु, समग्र उत्तर-मध्कालीन साहित्यिक जगत् का ऐसा प्रथम सारस्वत है, जिसके व्यक्तित्व में एक साथ प्रबन्धकार, दार्शनिक, आचार- शास्त्र के प्रणेता एवं क्रान्ति दृष्टय का समन्वय हुआ है। साहित्यिक समीक्षकों के अनुसार उत्तक प्रबन्धात्मक आख्यानों में पद्मावतीपुरवाल- दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 334
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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