SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्माण में उस देश की सामाजिक परिस्थितियां महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। इस देश का यह दुर्भाग्य रहा कि इतिहासकारों ने देश के केन्द्रीय इतिहास लिखने में पूर्ण ध्यान लगाया, फलस्वरूप समाज व क्षेत्रीय इतिहास की उपेक्षा होती चली गई। आज यह स्थिति है कि हमारे पास हमारा केन्द्रीय इतिहास तो है पर उसका आधार क्षेत्रीय इतिहास न के बराबर है। दूसरे शब्दों में यदि यह कहें कि हमारे इतिहास का आधार या रीढ़ की हड्डी ही नहीं है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इतिहास भूतकाल को वर्तमान में प्रतिष्ठित करता है, उसके पास वर्तमान को देने के लिए वह अटूट भण्डार होता है जिसकी वर्तमान को आवश्यकता होती है। जो भी इतिहास के दर्पण को सामने रखकर जिया, उसका निश्चित ही इतिहास बना है। 'बिन जाने ते दोष गुणनि को कैसे तजिए गहिए।' मानव जीवन के उत्तरोत्तर निर्माण की दिशा एकमात्र इतिहास ही है। पृथक-पृथक अस्तित्व में रहने वाली विभिन्न जातियों ने भारतवर्ष की सभ्यता और संस्कृति के किसी न किसी ऐसे महत्व को स्थापित किया है अथवा इनकी ऐसी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसको नजरअंदाज नहीं कर देने से भारतवर्ष की विशाल सांस्कृतिक परम्परा का सम्पूर्ण परिसरन और आकलन नहीं हो सकता। इसलिए जातीय इतिहास की परम आवश्यकता है। जैन समाज की विभिन्न जाति उपजातियों के इतिहास पर प्रकाश डालना आज इसलिए भी आवश्यक हो गया है कि उससे न केवल जैनों के अपितु देश के प्राचीन इतिहास पर भी प्रकाश पड़ेगा। जातियों के इतिहास सामने आ जाने पर उनमें रोटी-बेटी के पारस्परिक व्यवहार को प्रोत्साहन मिलेगा। आज जो विवाह के लिए एक ही जाति में सीमित रह गया है वह विभिन्न जैन जातियों में विवाह आदि होने पर विस्तृत क्षेत्र बन पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 12
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy