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________________ आम्नाय की अन्य जातियों जैसे अग्रवाल, खंडेलवाल आदि के गौत्रों के नाम वैष्णव धर्मावलम्बियों में भी पाये जाते हैं पर 'पद्मावती पुरवाल' कहीं नहीं मिलता। ५ ***** लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुए स्वाधीनता आंदोलन और स्वाधीनता मिलने के बाद राष्ट्र निर्माण में आयी नयी चेतना के आधुनिक वातावरण में इतनी उज्जवल और गौरवमयी परम्परा की संवाहक पद्मावतीपुरवाल जाति वर्तमान में ना तो अपनी प्राचीन परम्पराओं पर चल पा रही है और ना ही नव जागरण की इस बेला में धार्मिक आस्थाओं में नित नये आ रहे परिवर्तनों, नैतिक मूल्यों में हो रही गिरावट और अर्थिक आपाधापी में अपने आपको समुचित स्थान दिला पा रही है। हालांकि अब से लगभग 70-80 वर्ष पूर्व गठित अखिल भारतीय पद्मावतीपुरवाल जैन परिषद, पद्मावतीपुरवाल जैन महासभा, पद्मावतीपुरवाल जैन पंचायत आदि संस्थाओं ने आने वाले इस समय की कल्पना कर अपने अधिवेशनों में कुछ समयानुकूल प्रस्ताव पास कराये, पर पारस्परिक विश्वास, सद्भाव और सहयोग के अभाव में राष्ट्रीय स्तर पर अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सके। जहां कहीं जो भी प्रभावशाली व्यक्तित्व हुआ उसने स्थानीय व्यक्तियों अथवा अपने समर्थकों के माध्यम से मूल लक्ष्य को गौण बना दिया । परिणाम समाज में गिरावट और बिखराव ही रहा । आज पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर तीव्र गति से आ रहे इस बदलाव में हम अपनी रक्षा कैसे करें, यह महत्वपूर्ण विषय हमारी चिंता का कारण बन रहा है। इस चिंता के निवारण के लिए विनम्रतापूर्वक निम्न सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं 1. पद्मावती पुरवाल जाति के प्रमुख विद्वानों, श्रेष्ठियों और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सामान्य श्रावक-श्राविकाओं के नाम, पते और फोन नम्बर आदि स्थानीय पंचायतों अथवा संगठनों द्वारा संकलित हो पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 323
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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