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________________ पूरे देश में फैले अपने समाज की पहचान चिन्हित करे। प्रथम चरण में यह कार्य इस क्षेत्र के जुड़े परिवारों से प्रारंभ हो और बाद में यह मालवा व महाराष्ट्र के समाज से भी जुड़े। हम अतीत के पृष्ठों को सुरक्षित तो नहीं रख सके, अगर प्रयास करके वर्तमान को सहेज कर सुरक्षित रखने में भी सफल हो सकें तो हम भविष्य के साथ न्याय कर सकेंगे। महाकवि रइधू से लेकर मुनि ब्रह्मगुलाल तक जाने कितनी अनमोल निधियां हमारी- हमारे खजाने में थी जिन्हें आज की पीढ़ी भूल रही है। यह भूल पीढ़ी की भी नहीं है जानने का साधन उनके पास नहीं है। इस जाति के वर्तमान को पूरी तरह से जानने के लिए हमें और ज्यादा प्रयास करना पड़ेगा। और इस दायित्व का निर्वाह हम सभी को करना भी चाहिए। नैतिक आचरण आचरण यदि नैतिकता से ओतप्रोत होगा तो व्यक्ति सुखी और निराकुल जीवन जी सकेगा। नैतिक आचरण का अर्थ है मन को पवित्र और स्वस्थ बनाना। मन की पवित्रता या अपवित्रता निर्भर है अच्छे या बुरे विचारों पर। मन के विचार ही आचरण की आधारशिला है। __ आचरण की पवित्रता या अपवित्रता दोनों ही संक्रामक होती हैं। दूसरे भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। जिस प्रकार पवन के साथ उठने वाली एक छोटी सी चिनगारी पूरे गांव को जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार आचारण की अपवित्रता भी कोठे पर बैठी गणिका के समान रास्ता चलते हुओं को भरमाती और भटकाती रहती हैं इस भटकाव से व्यक्ति को उसका नैतिक आचरण ही बचा सकता , है। -निहालचन्द्र जैन पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 278
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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