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________________ विवाह हुआ। कुछ समय बाद इस परिवार में एक बालक का जन्म हआ। पद्मावती पुरवाल पंचायत के अस्थायी मंदिर को स्थायी और भव्य बनाने में उनका पर्याप्त योगदान रहा। श्री बनारसीदास जी के स्वर्गवास के पश्चात पंचायत का सारा काम श्री मुंशीलाल जी की देख रेख में ही होता था। 1942-43 में मंदिरजी की वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव बड़ी शान और उत्साह से मनाया गया। पंचायत का विधान बना और पंजीकरण हुआ। (1948 में हुए चुनाव में आप पंचायत के अध्यक्ष चुने गये और मृत्यु होने तक (1951) उसके अध्यक्ष रहे। श्री मुंशीलाल जी स्वभाव से विनम्र, मिलनसार और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। कागज के कुशल व्यापारी के रूप में बाजार में आपकी साख थी। श्री मुंशीलाल जी के साथ उनके प्रथम और द्वितीय पुत्र श्री प्रकाशचन्द जैन और श्री सुमेरचन्द जैन भी इसी दुकान पर बैठते थे। श्री मुंशी लाल जी का 1951 में स्वर्गवास हुआ। उनके तीसरे पुत्र श्री संतोषचन्द जी ने भी यही व्यवसाय अपनाया। बाद में सदर बाजार में एक दुकान और ली गई। श्री सुमेरचन्द जी पूरे परिवार की कुशलतापूर्वक देखभाल करते और परिवार को आगे बढ़ाते रहे हैं। श्री प्रकाशचन्द जी का 1984 में स्वर्गवास हो गया। विकास जैन उनका पुत्र है। श्री मुंशी लाल जी के दूसरे पुत्र श्री सुमेरचन्द जी पंचायत के कोषाध्यक्ष रहे हैं। इनके 4 पुत्र हैं। इनमें से श्री राकेश जैन पंचायत की पिछली कार्यकारिणी में सदस्य रहे हैं। श्री मुंशीलाल जी के तीसरे पुत्र श्री संतोषचन्द जी वर्तमान में कागज की पुरानी दुकान पर ही बैठते हैं। मंदिर जी में नितप्रति अभिषेक और पूजन करते हैं। श्री संतोषचंद जी इससे पहले भी काफी समय तक मंदिर जी के प्रबंधक रहे हैं। वर्तमान कार्यकारिणी में भी मंदिर प्रबंधक हैं। आप स्वभाव से विनम्र और मिलनसार हैं। आपके पांच पुत्र हैं। पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 226
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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