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________________ जातीय संगठन की भावनाओं के बीजारोपण को चिंतन-मनन और सहयोग की हवा, पानी और खाद मिलने पर उसमें अंकुर निकलना और उसका फलीभूत होना स्वाभाविक परिणति है । यही हुआ दिल्ली की पद्मावतीपुरवाल पंचायत के साथ | 1924-25 तक उक्त संगठन ने मस्जिद खजूर धर्मपुरा में अपने लिये एक मकान की व्यवस्था कर ली। उसके उपयोग (धर्मशाला बने या मंदिर) को लेकर संगठन में मतभेद हो गए। एक पक्ष के कुछ लोगों ने मकान में सफेदी कराके सफाई करायी और मकान में पहले से ही बने अल्मारी नुमा आले में जिन प्रतिबिम्ब लाकर विराजमान कर दिये 1 परिणाम स्वरूप बिखराव और विवाद सीमा से आगे बढ़ा पर निमित्त कारण जुटने और काललब्धि आने पर समाज पुनः एकजुट होने लगा । 1935-36 तक कई और परिवार यहां आकर बस गये। इससे जाति की शक्ति एवं कार्य क्षेत्र और अधिक बढ़ा । परिणामस्वरूप पंचायत में 1938-39 में अस्थायी मंदिर का जीर्णोद्धार करके स्थायी मंदिर बनाने का पंचायत ने संकल्प कर लिया। लगभग तीन-चार वर्ष में जीर्णोद्धार का कार्य पूरा हुआ। तत्पश्चात 1942-43 में वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। इस प्रकार आत्म कल्याण की ज्योति जलाने वाले मंदिर जी और बाद में तत्कालीन परिस्थितियों में जातीय गौरव की अनुभूति कराने वाली पंचायती धर्मशाला का निर्माण हुआ । पंचायत का विधान बनाकर उसे पंजीकृत कराया। भारत के विभिन्न अंचलों से पद्मावती पुरवाल जाति के परिवारों के दिल्ली आकर बसने वाले महापुरुषों के जीवन की यह सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि रही। एक विशेष बात और कि इन लोगों ने अपनी गौरवगाथा लिखने के लिये कहीं प्रमाण नहीं छोड़े। उनका इतिहास अथवा कीर्ति स्तम्भ तो मंदिरजी और धर्मशाला ही है। बाद में विभिन्न अध्यक्षों के नेतृत्व में बनी नई कार्यकारिणियों ने अपने जातीय गौरव की रक्षा करके पद्मावतीपुरवाल पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 216
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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