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________________ जैसा कि पूज्यपाद ने संस्कृत निर्वाणभक्ति में बताया है। राजगृही को गिरिब्रज और कुशाग्रपुर भी कहते हैं यह मगध की राजधानी थी। आजकल राजगृह राजगीर नाम से एक साधारण कस्बा है। उसका महत्व तीर्थ रूप में है। जैन लोग राजगृह के विपुलाचल, रत्नागिरि, उदयगिरि, श्रवणगिरि और वैभारगिरि को अपना तीर्थ मानते हैं । बौद्ध लोग गृद्धकूट पर्वत को अपना तीर्थ मानते हैं तथा सपृपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति हुई थी, ऐसा माना जाता है। यहां सोनभण्डार गुफा, मनिचारमठ, बिम्बसार, बन्दीगृह, जरासन्ध का अखाड़ा और प्राचीन किले के अवशेष दर्शनीय है। यहां गर्म जल के स्तोत्र हैं, जिनका जल स्वास्थ्यकर है। " श्री सुनहरी लाल जैन (आगरा) ने यहां पहाड़ पर सीढ़ियां बनवाईं। श्री महावीरजी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र महावीरजी, राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में अवस्थित है। पश्चिमी रेलवे की दिल्ली - बम्बई मुख्य लाइन पर भरतपुर और गंगापुर रेलवे स्टेशनों के बीच 'श्री महावीरजी ' नाम का रेलवे स्टेशन है जहां प्रायः सभी रेल गाड़ियां ठहरती हैं। रेलवे स्टेशन से मंदिर 6 कि.मी. दूर है। मंदिर तक आने जाने हेतु क्षेत्र की ओर से बस सेवा उपलब्ध है । इतिहास - मंदिर चांदगांव के निकट है। इस क्षेत्र पर भगवान महावीर की जिस मूर्ति की अतिश्य की ख्याति प्राप्त है, भूगर्भ से उसकी प्राप्ति के संबंध में अदभुत किंवदन्ती प्रचलित है। कहा जाता है कि एक ग्वाले की, जो जाति से चमार था, गाय जंगल से चरकर जब घर लौटती तो उसके स्तन के दूध से खाली मिलते। एक दिन ग्वाले ने जब गाय का पीछा किया तो उसको यह देखकर विस्मय हुआ कि एक टीले पर गाय खड़ी है और पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 185
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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