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________________ आभार अतीत की अमूल्य धरोहर का नाम इतिहास है। यह धरोहर वर्तमान का गौरव और भविष्य की आधार शिला होता है। अतीत का सम्मान और भविष्य को आधार देना वर्तमान की नैतिक जिम्मेदारी होती है। जो वर्तमान अपने अतीत के गौरव से अपरचित और अनिभज्ञ रहता है, वह अपना भविष्य उज्जवल और गरिमापूर्ण नहीं बना पाता । अतीत के गौरव प्रकाश में वर्तमान का चिंतन / स्वाभिमानी जीवन और उज्जवल भविष्य के लिए प्रेरित करता है। स्वाभिमानी चिंतन और आचरण से मनुष्य आत्म गौरव, धर्म गौरव, जाति गौरव और राष्ट्र गौरव की रक्षा कर सकता है। आओ अतीत के मूल्यांकन से भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं। अस्तुः ه हमारे निस्पृही पूर्वज ( साधु-संत, विद्वान और श्रेष्ठी वर्ग) इतिहास लेखन की ओर हमेशा उदासीन रहे । इसलिए बहुत प्रामाणिक जानकारियां नहीं मिलती, पर बदले हुए संदर्भों में वह जानकारियां प्राप्त कर उन्हें एकत्रित करना हमारे जातीय गौरव के लिए महत्वपूर्ण बनती जा रही है। खुशी की बात यह है कि जैन जातियों के इतिहासवेतत्ता श्री रामजीत एडवोकेट, ग्वालियर ने प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाशजी की प्रेरणा से इस ओर पहल की है। उसी का यह परिणाम है कि पद्मावती पुरवाल जाति का इतिहास 'पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास के रूप में प्रथम बार छप रहा है। इसमें सूचनाएं आधी अधूरी लग सकती हैं, पर इस दिशा में कदम उठ जाने के बाद लक्ष्य तक पहुंचने के संकल्प के साथ यह आपके सामने प्रस्तुत है । आपके सुझाव, सम्मति और सहयोग अपेक्षित है 1 'प्रगतिशील पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन संगठन' की ओर से ग्रंथ लेखक श्री रामजीत जैन एडवोकेट ग्वालियर, सम्पादक प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन और श्री बृजकिशोर जैन के साथ-साथ प्रबंध सम्पादक भाई प्रतापजी को भी बधाई प्रेषित करता हूं । ग्रंथ लेखन से लेकर प्रकाशन और उसके लोकार्पण तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सहायक सभी महानुभावों का आभार व्यक्त करता हूं। रमेशचन्द जैन कागजी, अध्यक्ष प्रगतिशील पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन संगठन xviii
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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