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________________ मंगल कामना हमारे जैन समाज विशेषतः दि. जैन समाज में इतिहास लेखन के प्रति उदासीनता ही रही है। और तो और अभी गत 100 वर्ष में जो घटा है, उसकी प्रामाणिक जानकारी हमारे पास नहीं है। यही कारण है कि रोज नये-नये विवाद उभर कर हमारे सामने आते हैं। ध्यातव्य है कि जो आज वर्तमान है कल वही इतिहास बनेगा, अतः वर्तमान भी सत्य और प्रामाणिक लिखा जाना चाहिए। पद्मावतीपुरवाल जैन समाज ने समाज और राष्ट्र के विकास में महती भूमिका निभाई है, यहां तक कि आजादी के आन्दोलन में भी इस समाज ने अनेक लोगों ने जेल की दारुण यातनाएं सहन की थीं। इसका क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध है। जिनबिम्बों की स्थापना, मन्दिरों-धर्मशालाओं का निर्माण तथा जैन साहित्य के प्रकाशन में यह समाज अग्रणी रहा है। आज भी अनेक श्रेष्ठी, समाज सेवी और विद्वान इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं, यहां किसी का व्यक्तिगत नाम लेना उचित नहीं होगा। जैन समाज के लगभग सभी उपसंप्रदायों का इतिहास लिखा जा चुका है अतः इस समाज के इतिहास लेखन की भी महती आवश्यकता थी। इतिहास-विद् श्री रामजीत जैन एडवोकेट ने यह इतिहास लिखकर इस कमी को पूरा किया है। श्री प्रताप जैन (जाग्रत वीर समाज) ने प्रकाशन में निष्ठापूर्वक अपना अवदान दिया है। इस प्रकाशन के लिए हमारी कोटिशः हार्दिक मंगलकामनाएं स्वीकारें। -डॉ. कपूरचन्द जैन खतौली XV
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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