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________________ रोहिणी नक्षत्र में माता श्रीमती कुसुमवती की पुनीत कुक्षी से हुआ। आपके जन्म के आठ वर्ष बाद आपके अनुज इन्द्रसेन का जन्म हुआ पर एक बर्ष बाद ही उनका निधन हो गया। तब से अपने माता पिता के एकमात्र पत्र आप ही रह गये। सन् 1929 से 1933 तक में आपने धर्मशास्त्री, तृतीय खण्ड, न्यायशास्त्री तृतीय खण्ड साहित्य शास्त्री तृतीय खण्ड एवं दि. न्यायतीर्थ की परीक्षायें उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् श्वे. न्यायतीर्थ धर्म एवं न्यायशास्त्री चतुर्थ खण्ड तथा न्यायाचार्य की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। सन् 1933 में आपका विवाह एटा निवासी लाला बाबूराम जी जैन की सुपुत्री प्रकाशवती के साथ हो गया। श्रीमती प्रकाशवती जैन एक विदुषी महिला थीं। धर्म विशारद और आयुर्वेद विशारद के अलावा सिलाई कटाई में डिप्लोमा प्राप्त हैं। __ आपकी रुचि का विषय प्रारम्भ से आयुर्वेद रहा। कई चिकित्सालयों में वैतनिक व अवैतनिक रूप से कार्य करते हुए आपने अपने विषयक्षेत्र को अत्यन्त विस्तृत कर लिया। दो हजार से अधिक लेख एवं चालीस पुस्तकों की रचना की। जून सन् 1935 से मार्च 36 तक आप महावीर दि. जैन विद्यालय किशनगढ़ (जयपुर) में प्रधानाध्यापक रहे। जैन संस्था हांसी (हिसार) में मार्च 36 से 38 तक प्रवक्ता रहे। दिस. 38 से 40 तक गोपालगढ़ में अध्यापन एवं चिकित्सा कार्य किया। जून सन् 40 से 42 तक बोर्डिंग हाउस, जबलपुर में सुपरिन्टेन्डेन्ट रहे। अक्टूबर 42 से 44 तक धनवन्तरि कार्यालय विजयगढ़ अलीगढ. में संपादक रहे। दिसम्बर 44 से जून 45 तक जैन समाज औषधालय रामगंज मंडी (कोटा) में चिकित्सा कार्य किया। जून सन् 46 से जैन समाज जबलपुर में चिकित्सा व प्रवचन कार्य चल रहा है। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास 94
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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