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________________ अवस्था में चेचक के भयंकर प्रकोप से आपका जीवन बुझते-बुझते बचा। छोटी दादी के लालन पालन ने आपके मातृवियोग के दुःख को अनुभवों में लाने नहीं दिया। 6 वर्ष की आयु में आपने पढ़ना प्रारम्भ किया। 8 वर्ष की आयु में अपनी दादी के साथ शिखरजी की यात्रा की, 12 वर्ष की उम्र में आपने कक्षा 5 पास की। आपका रुख अध्ययन की ओर देखकर आपके चाचाजी ने आपको सहारनपुर की दि. जैन जम्बू विद्यालय में प्रविष्ट करा दिया, यहां आप प्रवेशिका में दाखिल हो गये। प्रवेशिका तथा विशारद के तीनों खण्ड उत्तीर्ण करने के बाद आपने शास्त्री, ज्योति शास्त्री, ज्योतिषरल और ज्योतिष आचार्य किया। फाल्गुन शुक्ला द्वितीया संवत् 1997 में किरण देवी के साथ आपका विवाह सम्पन्न हुआ। परन्तु टी.बी. रोगाक्रान्त होने के कारण 3 वर्ष बाद किरण देवी का देहान्त हो गया। आपकी सासुजी ने दूसरी शादी आपकी साली के साथ कर दी। किन्तु 3 वर्ष बाद आपकी दूसरी पत्नी सोमश्री भी टी.बी. रोग से चल बसी। तब आपको विरक्ति उत्पन्न हो गई और आप विवाह सुख की कामना से बहुत दूर हो गये। किन्तु दादी जिन्होंने आपको पाला था, की स्नेहसिक्त आज्ञा से विमलादेवी के साथ आपको फिर विवाह करना पड़ा जिनसे आपको तीन पुत्र और दो पुत्रियों का योग मिला। टूंडला में अकलंक ज्योतिष भवन का संचालन किया। पांडे समाज में आप सुशिक्षित एवं प्रतिष्ठा प्राप्ति विद्वान रहे। आपका जीवन समाज सेवा, धर्मप्रभावना एवं सामाजिक संस्थाओं की समुन्नति में व्यतीत रहा। अनेक संस्थाओं के संस्थापक के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे। सुप्रसिद्ध पांडे कंचनलाल जी आपके भतीजे थे। पांडे वीरचंद जैन आपके पुत्र हैं। पिताश्री की तरह उनका भी कार्यक्षेत्र वही है। 87 पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
SR No.010135
Book TitlePadmavati Purval Digambar Jain Jati ka Udbhav aur Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjit Jain
PublisherPragatishil Padmavati Purval Digambar Jain Sangathan Panjikrut
Publication Year2005
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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