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________________ शुभाशीष णमोकार मन्त्र मगलमय है और अनादि सिद्ध है। इस महामन्त्र की सरचना महत्त्वपूर्ण और अलौकिक है । इस मन्त्र मे परमेष्ठी बबना है, जो परम पावन है और परम इष्ट है। उनकी स्मति, उनको अभ्यर्थना और उनकी विनय हमारे कर्म निर्जरण का प्रबल निमित्त है। यह पूर्ण विशुद्ध आध्यात्मिक मन्त्र है, इस मन्त्र के जाप से एक विशिष्ट आध्यात्मिक ऊर्जा समुत्पन्न होती है। क्योंकि महामन्त्र में किसी व्यक्ति विशेष की उपासना नहीं, अपितु गुणों की उपासना है। इस महामन्त्र का महत्त्व इमलिए भी है कि श्रुतज्ञान राशि का सम्पूर्ण खजाना, इसमे है। दूसरे शब्दो में यह महामन्त्र जिन शासन का सार है। इस महामन्त्र की गरिमा के सम्बन्ध ने पूर्वाचार्यों ने सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, गुजराती और राजस्थानी में विपुल साहित्य का सजन किया है । विविध दृष्टियों से इस महामन्त्र की महत्ता का उदघाटन किया है। __इसके श्रद्धापूर्वक जाप से लौकिक सिद्धियां और सफलताए तो प्राप्त होती हो है पर क्रमश इसके जाप से नियस सिदि और भवमुरित भी प्राप्त हो सकती है बशर्ते कि इसका जाप सम्पूर्ण मास्था और भक्ति के साथ, उचित विधि, उपयुक्त स्थान और समय मे शुद्ध मन से किया जाये। जिन्होंने भी जाने अनजाने इस मन्त्र का आलम्बन लिया है, उसे सकटो, आपत्तियों/विपत्तियो आदि से निकलने, मुलझने का मार्ग मिला है। एक णमोकार मन्त्र को तीन श्वासोच्छवास मे पढ़ना चाहिए। पहली श्वास मे णमो अरिहताण, उज्छवास मे णमो सिद्धाण, दूसरो प्रयास में णमो आइरियाण, उच्छवास में णमो उबजमायाण और तीसरी श्वास में णमो लोए और उच्छ्वास मे सव्वसाहूण बोले। णमो अरिहताण बोलने के साथ समवशरण में स्थित अष्ट प्रतिहार्यों से मण्डित परम औदारिक शरीर में स्थित वीतराग सर्वज्ञ अरिहन्त आत्मा की अनुभूति हो। गमो सिद्धाण बोलते समय नोकर्म से भी रहित सिद्धालय में विराजमाम पूर्ण शुद्धात्मा का अनुभव हो। गमो आपरियाण बोलने पर आचार्य के आठ आचारवान् आदि विशेष गुणों से पूर्ण शिक्षा देते हुए फिर भी अन्तर में, आत्मा में बार-बार उपयोग ले जाने वाले शिष्यो से मण्डित आचार्य का स्मरण हो। णमो उवमायाण बोलने पर चेतनानुभति से भूषित, बाह्य में पठन-पाठन
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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