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________________ णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता / 41 अन्ततः इतना ही समझना पर्याप्त होगा कि मन्त्र तो द्रव्यार्थिक नय या अर्थतत्व के आधार पर पूर्ण रूप से अनादि है, हां निर्माण काल मे सभव है पद रचना मे कुछ अन्तराल रहा हो । परन्तु हमारे समक्ष तो मन्त्र अपनी पूर्ण अवस्था में ही अनादिरूप में मान्य है। हमे उसकी निर्माण अवस्थाओ के तारतम्य के चक्कर में पड कर अपनी सम्यक दृष्टि को दूषित नही करना है। प्राचीन ऋषियो-मुनियो ने और अतिप्राचीन तीर्थकरो ने भी हो सकता है इस मन्त्र की अर्थ और वाणी की पूर्णता समय-समय पर की हो। अत उन्ही के द्वारा समग्र रूप में दिया गया मन्त्र ही स्वीकार करना चाहिए। फिर यह भी संभव है कि आरंभ में जो अरिहन्त और सिद्ध परमेष्ठी मात्र का उल्लेख मिलता है, हों सकता उसमें व्यक्ति विशेष ने उन दो परमेष्ठियों में ही श्रद्धा प्रकट करनी चाही हो, शेष तीन के रहने पर भी उन्हें शामिल न किया हो । अत बात वही पूर्णता और अनन्तता पर पहुचती है । प्रसिद्ध ग्रन्थ मोक्षमार्ग प्रकाशक के रचयिता प० टोडरमल जी पच नमस्कार मन्त्र की ऐतिहासिकता का संकेत करते हुए लिखते हैं कि - "अकारादि अक्षर है वे अनादि विधन हैं, किसी के किये हुए नहीं है । इनका आकार लिखना तो अपनी इच्छा के अनुसार अनेक प्रकार का है, परन्तु जो अक्षर बोलने मे आते है वे तो सर्वत्र सदा ऐसे ही प्रवर्तने है । इसीलिए कहा है कि - " सिद्धोवर्ण सामाम्नाय - इसका अर्थ यह है कि जो अक्षरो का सम्प्रदाय है सो स्वय सिद्ध है, तथा उन अक्षरो से उत्पन्न सत्यार्थ के प्रकाशक पद उनके समूह का नाम श्रुत है मो भी अनादि निधन है |" "} सन्दर्भ : 1 'ऐसो पच णमोकारों' - युवाचार्य महाप्रज्ञ - प्रस्तुति 2 तीर्थकर --- 77 णमोकार मन विशेषाक – ले० अगरचन्द नाहटा - दिस 1980 ง 3 महावीर वाणी- पृ० 33 - ले० भगवान रजनीश । 4 " जैन धर्म का मौलिक इतिहास" (प्रथम भाग ) - पू० 5-6 लेखक - आचार्य श्री हस्तिमल जी महाराज । 5. मोक्षमार्ग प्रकाशक - - पृ० 10-लेखक प० टोडरमल ।
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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