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________________ णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता / 37 परन्तु इतिहास का इतिहास मानव परम्परा और विश्वास में होता है जिसका मूल प्राप्त कर पाना काफी कठिन ही नहीं असभव भी है। फिर भी प्राप्त इतिहास क्या है ? अर्थात् ऋषि, आचार्य अथवा लेखक ने कब इस मन्त्र का उल्लेख किया । रचना कब हुई, यह वताना तो संभव नही है, किसने रचना की, यह भी बता पाना संभव नही है । परन्तु प्राप्त वाङ्मय के आधार पर णमोकार मन्त्र की ऐतिहासिकता पर विचार एक सीमा तक तो किया ही जा सकता है। "अनादि द्वादशाग जिनवाणी का अंग होने से यह अनादि मूलमन्त्र कहा जाता है । 'षट्खण्डागम' के प्रथम खण्ड जीवट्ठाड के प्रारम्भ में आचार्य पुष्पदत द्वारा यह मन्त्र मंगलाचरण रूप में अकित किया गया है। जिस पर धवला टीका के रचयिता आचार्य वीरसेन ने इसे परम्परा प्राप्त निवद्ध मंगल सिद्ध किया है। क्योकि मोक्षमार्ग, उसके उपदेष्टा और साधक भी अनादि से चले आ रहे है। आचार्य शिव कोटि कृत 'भगवती आराधना' की टीका के अनुसार यह मन्त्र द्वादशाग रचयिता गणधर कृत है। तीर्थकर और गणधर अनादिकाल से होते चले आ रहे है ।" इस मान्यता के आधार पर महावीर के गणधर गौतम के समय और कर्तत्व के साथ महामन्त्र को जोड़ा गया है । गौतम गणधर का समय ई० पू० का ही है । स स्वामी ने चौदह आगमो का सार लेकर णमोकार मन्त्र की खोज की, यह भी एक मान्यता है । गहाराजा खारवेल तथा कलिग की गुफाओ मे महामन्त्र के दो पद टकित है- णमो अरिहंताण, णमो मिद्ध । इससे भी रचयिता और समय का पता नही लगता है । खारवेल का समय ई० पू० द्वितीय शती का है। शिला लेख का समय 152 ई० पू० है । "आचार्य भद्रबाहु के अनुसार नंदी और अनुयोग द्वार को जानकर तथा पचमगल को नमस्कार कर सूत्र का प्रारम्भ किया जाता है । संभव है इसीलिए अनेक आगम-सूत्रों के प्रारम्भ में पंच नमस्कार महामन्त्र लिखने की पद्धति प्रचलित हुई । जिनभद्रगणी श्रमण ने उसी आधार पर नमस्कार महामन्त्र को सर्वश्रुतान्तर्गत बतलाया । उनके अनुसार पंच नमस्कार करने पर ही आचार्य सामायिक और क्रमश: शेष श्रुतियो को पढाते थे । प्रारम्भ मे नमस्कार मन्त्र का पाठ देने और
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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