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________________ 144 / महामन्त्र गमोकार एक वैज्ञानिक अन्वेषण और श्रेष्ठतम प्राध्यापक परम गुरु उपाध्याय परमेष्ठी हम सब का सदा मगल कर । समस्त मुनि संघ के ये सर्वोच्च अध्यापक होते हैं। रत्नवय (सम्यक दर्शन-ज्ञान-चारित्र्य) की निरन्तर आराधना मे लीन परम अपरिग्रही साध परमेष्ठी हम सब का मगल कर। किसी भी व्यक्ति या वस्तु की महानता उसम निहित गुणो के कारण ही मानी जाती है। फिर ये गुण जब स्व से भी अधिक पर कल्याणकारी अधिक होते हैं तभी उनकी प्रतिष्ठा होती है। इस क्सौटी पर पच परमेष्ठी बिल्कुल खरे उतरते हैं। जन्म मरण रोग, बुढापा, भय पराभव दारिद्रय एव निर्वलता आदि इस महामन्त्र के स्मरण एव जाप से क्षण भर मे नष्ट हो जाते हैं। णमोकार मन्त्र के माहात्म्य वर्णन को समझ लेने पर फिर और अधिक समझने की आवश्यकता नही रह जाती है अपवित्र पवित्रो वा, सुस्थितो दु स्थितो पि वा। ध्यातेत् पच नमस्कार, सब पापै प्रमुच्यते ॥1॥ अपवित्र पवित्रो बा, सर्वावस्था गतोऽपि वा। य स्मरेत परमात्मान स बाह्याभ्यन्तरे शुचि ॥2॥ अपराजित मन्त्रोऽय सबविघ्नविनाशन । मगलेषु च सर्वेषु प्रथम मगल मत ॥3॥ विध्नौधा प्रलय यान्ति शाकिनीभूत पन्नगा। विषो निविषता याति स्तूयमाने जिनेश्वरे ॥4॥ मन्त्र ससार सार विजगदनुपम सब पापारि मन्त्र, ससारोच्छद मन्त्र विषम विषहर कम निर्मल मन्त्रम् । मन्त्र सिद्धि प्रदान शिव सख जनन केवलज्ञान मन्त्र, मन्त्र श्रीजैन मन्त्र जप जप जपित जन्म निर्वाण मन्त्रम् ।।5।। आकृष्टि सुर सम्पदा विदधते मुक्तित्रियो वश्यता, उच्चाट विपदा चतुर्गतिमुवा विद्वेवमात्मेनसाम्। स्तम्भ दुर्गमनप्रति प्रयततो मोहस्य सम्मोहन, पायात् पचनमस्कारक्रियाक्षरमयी साराधना देवता ॥6॥ अहमित्यक्षर ब्रह्म वाचक परमेष्ठिन । ' सिद्ध चक्रस्य सद्बोज सवत प्रणमाम्यहम् ॥71
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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