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________________ णमोकार मन्त्र और रग विज्ञान / 101 चुप हो जाती है और जो गर्म हो जाती है वो टिक जाती है। जब सिर्फ आक्मीजन रह जाती है तो उसमे काटने की शक्ति बढ़ जाती है । __इस दुनिया में साइकिक (मानसिक इच्छा द्वारा) सर्जरी हो रही है इसका अर्थ है-मानसिक इच्छा द्वारा आपरेशन करना । पेट खोल देना, पेट बन्द कर देना । अपने पर भी तथा दूसरे पर भी यह की जा सकती है। णमोकार मन्त्र का मूलाधर ध्वनि है। ध्वनि ही प्रकृति की ऊर्जा का मूल स्वरूप है। इस प्रकृति मे जो मूलभूत शक्ति है उसके अनन्त रूप हैं। वे बनते हैं, स्थिर रहते हैं और नष्ट होते हैं । स्पष्ट है कि प्रकृति ध्वनि के माध्यम से प्रकट होती है। ध्वनि प्रकाश मे ढलकर रग और आकार ग्रहण करती है। महामन्त्र का सस्वर जाप या उच्चारण करतेकरते शरीर मे अपेक्षित रग और आकृतियों की अवतारणा होगी। ध्वनि तरग धीरे-धीरे विद्यत तरंगो में बदलेगी और फिर यह विद्यत तरंग रग और आकृति मे ढलेगी ही। इसके बाद भक्त स्वय की पूर्णता का साक्षात्कार कर सके ऐसी क्षमता की स्थिति में पहुच जाता है। महामन्त्र में केवल तीन पद हैं-महामन्त्र णमोकार की प्रमुखता हैप्राकृतिक ऊर्जा का जागरण । प्रकृति के अपने क्रम में तीन स्थितियां हैं-उत्पत्ति, स्थिति, और विनाश । णमोकार मन्त्र में णमो उवज्झायाण पद उत्पत्ति-ज्ञान, उत्पादन का है। णमो सिद्धाण पद स्थिति का है। णमो अरिहन्ताण पद नाश-कर्मक्षय का है। आचार्य और साध परमेष्ठी उपाध्याय मे ही गभित हैं। अतः इस प्रकृति और ऊर्जा के स्तर पर मन्त्र के तीन ही पद बनते हैं। उत्पत्ति, स्थिति और व्यय (नाश) और पुन -पुन. यही क्रम-ये तीन अवस्थाएं ऊर्जा की हैं। मिटटी, पानी, हवा, अग्नि ये सब ऊर्जा के क्षेत्र है। जब ऊर्जा ठोस (Solid) होती है तो मिट्टी बन जाती है। तरल होने पर जल और जब जलती है तो अग्नि बनती है । वहने पर वायु बनती है। जब केवल ऊर्जा ही-(ऊर्जा मात्र ही) रह जाती है तो वह आकाश हो जाती है। इन पाचों तत्त्वों के अलग रग हैं। इनके अपने-अपने केन्द्र हैं, इनकी अपनी प्रतीकात्मकता है। इन रगो की मानव शरीर मे न्यूनता का गहरा प्रभाव पड़ता है। ये रग, शक्ति केन्द्र, प्रतीक, और इनकी न्यूनता को पंच परमेष्ठी के साथ जोडकर देखने से पूरा चित्र प्रस्तुत हो जाता है। सार चित्र इस प्रकार है
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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