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________________ णमोकार मन्त्र और रंग विज्ञान / 99 प्रकृति, तस्व, रंग - प्रकृति पंच तत्वों के माध्यम से प्रकट होती है । प्रकृति का अर्थ है सृष्टि की मूल एनर्जी (ऊर्जा) । प्र का अर्थ है प्रकृष्ट गुण अर्थात् पैदा होना । कृ का अर्थ है क्रियाशील होना अर्थात् स्थिर होना । 'ति' का अर्थ है नष्ट होना । तो प्रकृति शब्द का पूर्ण अर्थ हुआ - बनना, स्थिर होना और नष्ट होना । इसी प्रकार प्र - सतोगुण, कृ - रजोगुण और ति - तमोगुण के प्रतिनिधि अक्षर है। इन तीन में ही समस्त ससार बसा हुआ है णमोकार मन्त्र इस सबको जानने की कुजी है । तत्त्व और उनका प्रवाह - हम अपनी नासिका को हवा की दिशा और गति के द्वारा अपने भीतर के तत्वों की स्थिति को जान सकते हैं । पृथ्वी का प्रवाह 20 मिनट तक जल तत्त्व का प्रवाह 16 मिनट तक, वायु का 12 मिनट तक, अग्नि तत्व का 8 मिनट तक और आकाश का प्रवाह नासिका वायु में 4 मिनट तक चलता है । नासिका में बायी ओर चन्द्र स्वर है और दायी ओर सूर्य स्वर है । शरीर मे आनुपातिक शीतलता और उष्णता जरूरी है । अनुपात बिगडने पर रोग आते है । यदि नासिका की हवा नीचे की ओर चल रही है तो वह जल तत्त्व प्रधान है । तिरछी ओर है तो पृथ्वीतत्त्व है । ऊपर की ओर जा रही है तो अग्नि तत्व है । चारो तरफ बह रही है तो वायु तत्त्व है । यदि कुछ स्पर्श करती हुई ऊपर जाती है और वही समाप्त हो जाती है। तो वह आकाश तत्त्व है। पृथ्वी 12, जल 16, वायु 8, अग्नि 6, आकाश 4 अगुल तक अपनी दिशा मे जा सकता है | प्रवाह क्षण (मिनट) दिशा गति सार चित्र नासिका विवरों की हवा और तत्त्व अग्नि 8 पृथ्वी तत्त्र 20 जल 16 12 अंगुल 16 पर्यन्त वायु 12 तिर्यक्ष गति अधोगति चतुर्दिक ऊर्ध्व गति कुछ ऊर्ध्वमुखी अल्प जीवी अगुल पर्यन्त आकाश 4 8 अगुल पर्यन्त 6 अंगुल 4 अंगुल पर्यन्त पर्यन्त
SR No.010134
Book TitleNavkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain, Kusum Jain
PublisherKeladevi Sumtiprasad Trust
Publication Year1993
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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