SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुपसुंदरी. मकरण ५ मुं.jar सत्य माटे शरणुं अने अभयकुमारनो न्याय. ३ SARDHA बन्नेनो आ प्रमाणे घणोज वखत झगडो चाल्यो, परंतु ते पैकी कोईपण हार्यानुं चिन्ह जणायुं नहीं, किंवा ते पैकी कोईपण पोते लबाड छे एम कबुल करे नहीं. आधी ते वृद्ध माबापने वधारे चिंता थवा लागी. आ कारस्थानमां पोते पोताना खरा पुत्रने केवी रीते ओळखी काढवो ते मुश्केल थई पडवाथी ते बिचारांओ मोटेथी रडवा लाग्या ! रूपसुंदरीनी पण तेज स्थिति हती. .. आ वखते बराबर दिवस उग्यो होवाथी तेओना रडवाककळवाथी आडोशीपाडोशीनी तथा बीजा लोकोनी घणीज ठठ्ठ नामी हती ! परंतु ते तरुणोने बोलवानुं कारण अने उभयनो चहेरो, अवाज, उमर अने पोशाखना सरखापणाथो तेमनी अक्कल पण गुम थई गई ! माबाप के स्त्री, ज्यां पोतानो पति कोण ते ओळखी शके नहीं त्यां इतर लोकनी तो वातज शं? लोकोए ते बन्नेने अनेक प्रकारना प्रश्न पूछया, परंतु ते बन्नेए रुपसुंदरी उपर पोतानो सरखोज हक्क तेटलाज जोरथी बताववा लाग्या अने बन्ने पण एक बीजाने चोर कहेवा लाग्या.
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy