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________________ दिगंबर जैन. दीधो अने बधो नहीं, तोपण ते उद्गारथी तेनो कामवेग घणोज कमी थई गयो. पुरुषना भाषणनो किंवा स्पर्शनो विलक्षण अनुभव रुपसुंदरीने आ जन्ममां कदि पण थयो नहोतो; तथापि 'दोरडी बळे पण वळ बळतो नथी' ए कहेवत मुजब ते तेमने कहवा लागी: 'महाराज, मारी आटली पण कामना केम परी नथी करता ? आप जो म्हारो हेतु पार नहीं पाडशो, तो हुं झुरीझुरीने आपनी समक्ष मरीश. माझं मन आपनी उपर एटलं लाग्युं छे के आपना सिवाय म्हने जो स्वर्ग पग मळे, तो ते नर्क जेवू गणी काढुं !" ___ "सुख ! सुख ! सुख ! हे अभागिणी!" ते शांतचित्त मुनि मोटा गंभीरपणाथी बोल्या "तुं केवा गाढ अज्ञानतिमिरमां बेळी छे अने तारुं सुखलोलुप्त मन, विकारवशमां पड़ी केवा मिथ्या सुखनी आशा राखे छे ? सुखनी इच्छा दरेक प्राणीने होय छे अने ते प्रमाणे तने पण होय ते साहजीक छे, परंतु मुख बाबतमां तारी समजुत मात्र भूल छे. खरं सुख अने तारी ते विषेनी समजुतमां पाणी अने अमि, किंवा रात्रि अने दिवसना प्रमाणे विरोध अगर अंतर छे. तुं सुख समजी जेना पाछळ लागी छे अने स्वेच्छाथी जेनो अनुभव ले छे, ते विषयभोग खरेखलं साचुं सुख छ के ? ज्यारे तेम होय तो सुख बाबत तने जे चटपट लागी रहेली छे ते केम? सुख मळवा
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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