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________________ १४ .n......... दिगंबर जैन. __ आ वखते प्रातःकाळना आठ वाग्यानो सुमार हतो. सृष्टिन स्वरुप हजु पण सौम्य अने रमणीय हतुं अने मुनिश्वर तेनुं अवलोकन करी ते उपरथी मळनारा अनेक विचारतरंगमां मग्न थई गया हता. ते अति स्वरुपवान होवा उपरांत तपथी तेमनी कांति वधारेज खोली नीकली हती. तेमनी मुखमुद्रा अति शांत होवा छतां तेमां एटलं मोहकपणुं हतुं के जोनारने तेमनी तरफ भक्तिभाव प्रकटी नीकळतो. ते महात्माने जोई रुपसुंदरीने एकदम मोह उत्पन्न थयो अने पोतानो मार्ग छोडी ते तरफ वळी. ते तेमना समक्ष उभी रह्याने घणोज वखत थवा छतां पण मुनिना म्होंमांथी एक शब्द पण नोकळ्यो नहीं. ' मुनि मने कोण, क्यांना वगेरे प्रश्न पूछशे एटले पछी हुं मारी मनो. कल्पना तेमने जणावीश' एवो रुपसुंदरीना मनमां विचार हतो, परन्तु मुनि तो पोताना ध्यानमां मग्न होवाथी तेणीना तरफ नजर पण करी नहीं, जेथी घणोज व खत राह जोया पछी कंटाळी जई पोतेज मुनि साथे बोलवा लागी 'महाराज ! केटला वखतथी हुं आपनी समक्ष उभी रही छु, छतां पण भाप मारी साथे एक अक्षर सुद्धां बोलता नथी ! केमवारु, हुं आपनी कृपाने पात्र नथी शुं ? महाराज ! जेनी प्राप्ति माटे सेंकडो तरुण पोताना सर्वस्व उपर पाणी फेरववा तैयार छे, ते पोतानी मेळे तमारी पासे मान्या छतां
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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