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________________ दिगंबर जैन. रह्यो ! बोल ! हारो आ संशय नष्ट थवा माटे हुं अत्यारेज शुं करुं ते बोल ! म्हारा आ हृदयने विदीर्ण करी हेमां हारा बद्दल वसतो गाढ प्रेम हने शुं देखाहूं?" ____ "नहीं, नहीं !” रहेना आ नाटकी भाषणथी निःशंक थयेली रुपसुंदरी बोली-"म्हारा घेला मनमां विचित्र शंका उत्पन्न थई ! पण हवे, म्हने मुक्त करो, कारण के खेतरमां जल्दी जq जोईए नहीं तो आपणो सपळो विचार धूळधाणी थई जशे !" तेणीना मधुर भाषणथी अने चंद्रमुखीना जेवा मुखमंडळनो त्याग करवो देवदत्तने आ वखते घणोज विषम लाग्यो, परंतु पछीखें अखंड अने अविनाशी सुख (!) तरफ विचार करतां, देणे ठरावेलो वखत थतां सुधी छूटी करी तेणीना वियोगर्नु दुःख सहन करवानो निश्चय कयों अने तेणीने पोतानी बाथमांथी मुक्त करी. मात्र छोडती वखते पोतानुं वचन पाळवा, फरीथी एकवार याद करावी, सोगनपूर्वक कबूल करावी लीधुं ! अने पछीथी बन्ने जण पोतपोताना रस्ते पड्या !
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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