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________________ दिगंबर जैन. आ तरफ वळ्यो तेथीज लोकोना द्रव्यनो प्रवाह पण म्हारा घर तरफ वळ्यो ! आ अखंड वहेनार अभिषेक-जळनो प्रवाह एटले हने शु समजाय छे ? आपणा घरमां वहेनारों द्रव्यनो प्रवाह छे प्रवाह ! समज्यो !" पिताना आ उत्तरथी पुत्र एकदम ठंडो थई जाय एमां शुं आश्चर्य ! आवा धूर्तविद्यामां निपुण ते भिक्षुकना घेर देवदत्तनो जन्म थाय, त्यारे उद्योग प्रत्ये हेने तीरस्कार उत्पन्न थाय रहेमां शुं आश्चर्य ? सिवाय हेना पितानो उपदेश पण हेनी मा वृत्तिने पुष्टी आपे तेवो हतो. ते, देवदत्तने हमेशां कहेतोः " आपणे कोईपण धंधो करीने शुं करवु छ ? आपणी वंशपरंपरानो व्यवसाय आपणने युक्तिपुरःसर करतां आवड्यो एटले बस ! अने आ युक्ति प्राप्त करवाने ' हाजी हा' पणुं मने घणीज धूर्तता, ए सिवाय बीजु कांईज नथी. पछी आपणने शानी खामी छे ? यनमाननी बधी संपत्ति ते खुशीथी आपणी समज. म्हारो आ उपदेश बराबर ध्यानमा राखी चालीश, तो हारा जन्मांत सुधी कशानी पण कमी पडशे नहीं !" थयु ! आ प्रमाणे न्हानपणी आळसु अन निरुद्योगी बनेलो देवदत्त-तरुण शरुआतीज स्वच्छंदी अने बदफेलामां सपडाय एमां शुं आश्चर्य ? अने ते हवे पूर्णपणे दुर्व्यसनमां सपडायो हतो. आ सिवाय लोकनिंदा अने ठठ्ठामश्करी पण तेना अंगनो एक स्वभावज थई पडयो हतो. केटलाक
SR No.010133
Book TitleMahavir Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Hirachand Gandhi
PublisherMotilal Hirachand Gandhi
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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