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________________ पर ध्यानपूर्वक विचार करे तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि हमारे बहुत से कार्य-कलाप हिंसा के अन्तर्गत आ जाते हैं। उनसे बचने के लिए हमको बहुत सावधानी की आवश्यकता है। फिर भी अधिक स्पष्ट करने के लिए हम यहा सक्षेप मे हिंसा के विविध रूप दे रहे हैं। (१) किसी भी प्राणी को कष्ट देना या उसका वध करना तो प्रत्यक्ष मे हिंसा है ही, मनुष्यो और पशुओ से उनकी शक्ति से अधिक कार्य लेना या उन पर अधिक बोझ लादना, उनको भूखा रखना, उनको आवश्यकता से कम भोजन देना, समय पर भोजन न देना, उनको अनुचित रूप से बाध कर रखना या अन्य किसी प्रकार के कष्ट देना, किसी से कोई कार्य करा कर उसको उचित पारिश्रमिक न देना, किसी के न्यायोचित अधिकारो का हनन करना, ये सब कार्य भी हिंसा की श्रेणी मे ही आते हैं। किसी को ऐसी सलाह देनी जिससे हिसा को बढावा मिले तथा किसी को हिसा करने के लिए उपकरण देना तथा प्रोत्साहित करना, अन्याय और बेईमानी करना या इनका समर्थन करना आदि भी हिसा ही है। हम कभी-कभी ऐसे कार्य भी करने लगते है जिनसे हमारा प्रयोजन तो कुछ भी सिद्ध नहीं होता, परन्तु हम व्यर्थ मे ही हिसा के दोषी हो जाते है। जैसे मन मे किसी की जय तथा किसी की पराजय तथा अनिष्ट की कामना करनी, हवाई किले बनाना, घास-पेड-पौधे आदि उखाडना, जमीन खोदना, पानी फेकना, आग जलाना, बेकार मे ही उछल-कूद व भाग-दौड करना, किसी की ओर ककरपत्थर फेकना, उथला हसी-मजाक करना और पशु-पक्षियों को परेशान करना आदि। जीवन की आवश्यकताओ की
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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