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________________ "जो फल ६८ तीर्थों की यात्रा करने में होता है वह फल आदिनाथ भगवान के स्मरण करने से होता है।" __-नाग पुराग) (ऋषभनाथ भगवान को प्रथम तीर्थकर होने के कारण आदिनाथ भी कहते हैं।) प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभनाथ को आठवां अवतार बतलाकर भागवत पुराण के पाँचवें स्कन्ध के चौथे, पांचवें और छठे अध्याय में उनका बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त मोहनजोदारो (पाकिस्तान) की खुदाई से प्राप्त पाँच हजार वर्ष पुरानी मुद्रामओ पर भगवान ऋषभदेव की मूर्ति तथा 'नमो जिनेश्वराय' आदि वाक्य अकित हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सूरदास जी ने श्रीमद्भागवत के आधार पर सूरसागर की रचना की थी। उसमे लिखा बहुरो रिषभ बडे जब भये । नाभि राज दे बन को गये ।। रिषभ राज परजा सुख पायो। जस ताको सब जगमें छायो।। रिषभदेव जब बन को गये। नवसुत नवी खण्ड नृप भये॥ भरत सो भरत खण्ड को राव । करे सदा ही धर्म अरु न्याव।। -(सूरसागर, पंचम स्कन्ध) ऊपर लिखित तथ्यो से यह प्रमाणित हो जाता है कि जैन धर्म और उसके प्रचारक तीर्थकर इन वेदों व पुराणो की रचना काल से भी अत्यन्त प्राचीन हैं। ___ कुछ इतिहासकार तो जैन धर्म को इस संसार का सबसे प्राचीन धर्म और भगवान ऋषभनाथ को इस युग के सर्वप्रथम धर्म प्रचारक के रूप में स्वीकार करते हैं।
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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