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________________ था। मुनि अवस्था मे ध्यान मे लीन रहता था।" यह सर्वविदित है कि उपरोक्त सारी क्रियायें जैन साधु की हैं। इसलिये इस तथ्य मे किसी प्रकार की शका नही है कि भगवान महावीर के जन्म के समय यहा जैन धर्म प्रचलित था । परन्तु वह शिथिल अवस्था मे था । भगवान महावीर ने उसमे नये सिरे से प्राण फूके । जैन धर्म की प्राचीनता का प्रमाण हमे वेदो और पुराणो से भी मिलता है। वेद ससार के सबसे प्राचीन ग्रथ माने जाते हैं । इन वेदो मे ही कई स्थानो पर जैन तीर्थकरो - यथा वृषभनाथ, सुपार्श्वनाथ और नेमिनाथ ( अरिष्टनेमि ) के नाम आये हैं और उनका उल्लेख करके उनको नमस्कार किया गया है। इन तीर्थंकरो को 'जिन' तथा 'अर्हन्त' के नाम से भी सम्बोधित किया गया है । विद्वान पाठको के अवलोकन के लिए हम यहा पर कुछ वेद मन्त्रो का हिन्दी अनुवाद दे रहे हैं। "जिसमे बडे-बडे घोडे जुते हुए है ऐसे रथ मे बैठे हुए आकाश पथ पर चलने वाले सूर्य के समान विद्यारूपी रथ मे बैठे हुए अरिष्टनेमि का हम आह्वान करते हैं। " - ( ऋग्वेद अ० २ अ० ४ व २४ ) "हे अरिष्टनेमि मेरी रक्षा करो ,, - (यजुर्वेद अ० २६) " अतिथि, मासोपवासी, नग्न मुद्राधारक भगवान् महावीर की उपासना करो, जिससे तीन प्रकार की अज्ञान अन्धकार रूपी रात्रि पैदा न हो ।" Ag - (यजुर्वेद, अध्याय १६, मन्त्र १४ ) "तू अखण्ड पृथ्वी - मण्डल का सार त्वचा स्वरूप है, पृथ्वीतल का भूषण है, दिव्य ज्ञान द्वारा आकाश को ૪૨
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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