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________________ (यहां पर महात्मा बुद्ध ने भगवान महावीर के सर्वज्ञ होने का प्रतिवाद नहीं किया है-लेखक) (मज्झिम निकाय, चूल दुक्खक्खन्ध सुत्तन्त, १-२-४) एक समय महात्मा बुद्ध शाक्य देश मे कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम मे विहार करते थे। महानाम शाक्य महात्मा बुद्ध के पास आया और अभिवादन कर एक ओर बैठ गया। महात्मा बुद्ध ने उसे सम्बोधित करते हुए कहा" महानाम | एक बार मैं राजगृह के गृषकूट पर्वत पर विहार कर रहा था। उस समय बहुत सारे निगठ (जैन साधु) ऋषिगिरि की कालशिला पर खडे रहने का व्रत ले, आसन छोड, उपक्रम करते थे। वे दुखद, कटु व तीव्र वेदना झेल रहे थे। मैं सन्ध्याकालीन ध्यान समाप्त कर, एक दिन उनके पास गया। मैंने उनसे कहा "आवुसो। निगठो, तुम खडे क्यो हो ? आसन छोडकर दुःखद, कटु, व तीव्र वेदना क्यो झेल रहे हो ?" निगठो ने मुझे तत्काल उत्तर दिया-'आवुस निगठ नातपुत्त (भगवान महावीर) सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं। वे अपरिशेष ज्ञान दर्शन को जानते है । चलते, खडे रहते, सोते, जागते, सर्वदा उन्हे ज्ञान-दर्शन उपस्थित रहता है । वे हमे प्रेरणा देते हैं 'निगठो पूर्वकृत कर्मों को इस कडवी दुष्कर क्रिया (तपस्या) से समाप्त करो। वर्तमान मे तुम काय, वचन, व मन से सवृत हो, अत यह अनुष्ठान तुम्हारे भावी पाप कर्मों का अकारक है। इस प्रकार पूर्वकृत कर्मों का तपस्या से अन्त हो जाने पर और नवीन कर्मों के अनागमन से तुम्हारा चित्त भविष्य मे अनास्रव होगा, आस्रव न होने से कर्म-क्षय होगा, कर्मक्षय से दुखक्षय, दुःखक्षय से वेदनाक्षय और वेदनाक्षय से सभी दुख नष्ट हो जायेंगे'।" ऐसा कहकर महात्मा बुद्ध
SR No.010132
Book TitleMahavir aur Unki Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Radio and Electric Mart
PublisherPrem Radio and Electric Mart
Publication Year1974
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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